गुणकारी वनस्पतियों द्वारा चिकित्सा

शेक्सपियर ने कहा है – “प्रकृति ने गर्म-ठण्डे, आर्द, सुगंधयुक्त तथा आंखों को प्रसन्नता देने वाले व कष्टकारक सभी तरह की वस्तुओं और फूलों को बनाया है। यदि मनुष्य अपने ज्ञान – विवेक से चाहे तो जीवन की खुशियां लूटे या निष्क्रिय होकर कष्टों से रोता रहे। यह निर्णय प्रकृति ने उसी पर छोड़ दिया है।”

औषधियों के सिद्धान्त के विषय में साथल ने कहा है – “ये रोगों के विपरीत प्रभावकारी गुणों से युक्त होती हैं तथा उनके प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न कर मानव शरीर में संतुलन बनाने का कार्य करती हैं।”

पार्सुलस ने कहा है – “प्रकृति किन्हीं दो प्रकार के जीन के गुणों को सदैव सुरक्षित रखने की व्यवस्था बनाये रहती है। यही कारण है कि दो प्रकार किन्हीं दो प्रकार के बीजों को एक साथ बोने से उसमें उन्हीं के गुणों से युक्त वनस्पतियों का विकास होता है।”

रसायन विज्ञान घटिया किस्म की धातुओं को उत्तम कोटि के गुणों से युक्त धातु में बदलने की क्षमता रखता है। वे निम्न क्रमानुसार काम करती हैं -

शीशा – शनि (W), टिन – बृहस्पति (V), लोहा – मंगल (U), चांदी – चन्द्रमा (R), तांबा – शुक्र (T), पारा – बुध (S) तथा सोना – सूर्य (Q)।

उक्त सात धातुयें संशोधित अवस्था में विभिन्न रोगों का निवारण करती हैं। भारतीय आयुर्वेद शास्त्र में इनका भस्म बनाकर औषधयों में मिलाया जाता है।

प्राचीन चिकित्सा शास्त्र धातुओं के योग से परिचित तथा उनके द्वारा कठिन रोगों के इलाज में कारगर था। इसी नियमानुसार चिकित्साविदों ने चिकित्सा पद्धति की रचना की। वे वनस्पतियों के बीजों – कोकोनट से मस्तिष्क सम्बन्धी तथा हृदय सम्बन्धी बीमारियों का इलाज करते थे। कुचला से निर्मित दवा नक्स वोमिका मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक आश्चर्यजनक औषधि है। यह बहुत सी दवाओं के साइड इफेक्ट दूर करने में काम आती है।

प्रकृति के इसी प्रतिछाया सिद्धांत के अनुसार विश्व भाषाओं का आसानी से प्रचार किया जा सकता है। इनमें सहस्यमयी विभिन्नता भरी पड़ी हैं। प्रकृति ने सभी आकारों को इन वनस्पतियों में दिखाया है खोपड़ी की हड्डियां, आंख, नाक, कान, मुंह, गला, पेट तथा हाथ इत्यादि वनस्पतियों के फूलों में भी पाया जाता है। इनमें भी आकाशीय नक्षत्रों का प्रभाव मानव शरीर की भांति पड़ता है।

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