प्रकृति के आईने में मानव शरीर

मानव शरीर प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति है। शरीर की मांसपेशियां (क्रोमोसोम) स्थान विशेष की जलवायु, आकाशीय स्थिति तथा पर्यावरण पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं। भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन से मानव शरीर, रूप रंग तथा कार्य क्षमता में स्पष्ट अंतर परिलक्षित होता है। उदाहरणार्थ – गर्म भीषण जलवायु वाले प्रदेशों के निवासी श्याम वर्ण अधिक शक्तिशाली तथा शीघ्र प्रौढ़ता प्राप्त करने वाले होते हैं जबकि अत्यन्त ठंडे स्थानों के लोग बर्फ के समान सफेद चमड़ी और भूरे बालों वाले होते हैं। उनकी मांसपेशियां शारिरिक क्षमता एवं प्रकृति – व्यवस्थानुसार भिन्न प्रकार की पायी जाती हैं।

जिस प्राकार पृथ्वी का निर्माण द्रवों व पदार्थों के संघनीकरण अर्थात् घनीभूत होने से हुआ है, ठीक उसी प्रकार मानव शरीर का निर्माण प्रोटोप्लाज्मा के जमाव व विकास द्वारा हुआ है। इस प्रकार मानव प्रकृति का प्रतिबिम्ब स्वरूप है। रक्तशिराओं एवं मांसपेशियों का विकास प्रकृति की गति तथा अत्यंत सूक्ष्म रासायनिक क्रिया के अनुरूप हुआ है। मानव शरीर संरचना में कोशिकाओं एवं रक्त शिराओं का निर्माण भी उनकी प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से हुआ है, जिसे कइ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। एक वर्ग के व्यक्ति के स्वभाव, शारीरिक बनावट, क्षमता, व्यवहार तथा उसे होने वाल रोगों की प्रकृति में भी अन्तर पाया जाता है। कहीं भी समानता नहीं पायी जाती। फिर भी अनेक प्रकार की विभिन्नताओं से युक्त प्रकृति के अवयवों का एक-दूसरे से बहुत गहरा सम्बन्ध है।

मानव शरीर को रचना वीर्य एवं रज से हुई है। इसके संघटन में प्रकृति की रासायनिक क्रिया का बहुत बड़ा महत्व है। इसमें दो प्रकार के सेल्स का सम्बन्ध है – एक पॉजिटिव ( घनात्मक ) तथा दूसरा निगेटिव ( ऋणात्मक ) – बैटरी के दो पोल्स की तरह । परन्तु इन दोनों सेलों की रचना जैव कणों अर्थात ( लाइफजर्म्स ) के द्वारा हुई है। डॉ. मोल्सकॉट के अनुसार – बिना इलेष्मा के मुलायम अस्थि नहीं बनती तथा बिना मुलायम अस्थि व नमक के कोई हड्डी नहीं बन सकती। बिना लौह कणों के खून नहीं बन सकता और खून के बगैर नख की उत्पत्ति नहीं हो सकती। ये जैव रासायनिक तत्व पृथ्वी तथा हवा में पाये जाते हैं। यह तथ्य जानने योग्य है कि इन पदार्थों का सृजन परमाणुओं के संघटन से होता है।

व्यक्ति के नर्वस सिस्टम ( तंत्रिका कोशिकाओं ) का सम्बन्ध आकाशीय गतिविधियों से होता है। चंद्रमा धरातल वायु, जल तथा सभी वनस्पतियों पर अपना प्रभाव डालता है, जो उसकी किरणों के सम्पर्क में आते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि चंद्रमा तथा सूर्य पृथ्वी पर होने वाली सभी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं तथा रासायनिक कार्य-कलापों के परिवर्तन में सहायक होते हैं। इनके प्रभाव से ही पृथ्वी पर शारीरिक, आर्थिक तथा भौगोलिक परिवर्तन होता है। सूर्य वनस्पतियों तथा मानव शरीर का विकास करता है जबकि चंद्रमा वनस्पतियों में औषधीय गुणों का समावेश कर मानव को स्वस्थ बनाता है।

रोगों की उत्पत्ति –
सूर्य और चंद्रमा द्वादश राशियों पर प्रभाव डालकर उनमें अनेक रोग-लक्षण पैदा करते हैं। ऐसे में राशियों की स्वभावगत विशेषता एवं रोग की प्रकृति निम्न प्रकार की होती है -
A मेष -
इसका स्वामी मंगल है। यह कर्क राशि में नीच का होता है और मकर राशि में उच्च का। यदि लग्न मेष हो और लग्नाघिपति नीच का हो तो व्यक्ति को जीवन भर चोटें लगती रहती हैं। ऐसे व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप व सीने में दर्द रहता है। इन्हें नशीली जहरीली वस्तु या किसी जन्तु के काटने का भय रहता है। इस लग्न वालों की पराक्रम शक्ति धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है।

B वृष –
यदि वृष लग्न का स्वामी नीच का हो तो उसका दिमाग गलत कार्यों व धंधों की ओर चला जाता है। ऐसे व्यक्ति अश्लील हरकतें करते हैं। असामाजिक लोगों की संगति में रहने लगते हैं। इनका सम्बंध नीच वर्ग की स्त्रियों से होता है। यदि वृष लग्न का स्वामी शुक्र कन्या राशि में स्थित हो तो इनकी संतान स्वस्थ नहीं होती। ये यौन रोगों से पीड़ित होते है।

C मिथुन –
यदि मिथुन लग्न का स्वामी नीच का हो तो उसे फेफड़े, सांस की नली, अंतडियों तथा दमे की बीमारी हो सकती है। इसे प्रायः गैस की बीमारी व घबराहट होती है। इस राशि का स्वामी बुध मीन राशि में नीच का होता है। मिथुन लग्न वालों को पिता से परेशानी होती है। इनके स्वभाव में तीव्रता एवं उत्तेजना कम ही पायी जाती है।

D कर्क –
कर्क का स्वामी ग्रह वृश्चिक राशि में नीच का होता है। पेट, गैस व पाचन सम्बन्धी शिकायतें इस लग्न वालों को अकसर होती है। इनका दिमाग व मन परेशान रहता है। संतान नीच विचारों की होती है। इनकी बुद्धि कुण्ठित, मन चलायमान तथा दिल कमजोर बना रहता है। कभी-कभी इनमें चिंतन एवं सोच-विचार की शक्ति भी कम हो जाती है।

E सिंह –
सिंह लग्न का स्वामी सूर्य तुला राशि में नीच का होता है। इस लग्न वाले व्यक्ति को नेत्र, हृदय तथा हड्डी सम्बन्धी बीमारी अवश्य होती है। ऐसे व्यक्ति विसंगतियों में पड़कर अच्छे कामों से भटक जाते हैं तथा कुलषित कार्यों में लग जाते हैं। व्यर्थ के विषयों को लेकर लड़ाई-झगड़ा करने लगते हैं। यदि अन्य ग्रह ठीक हों तो ये बहुत भाग्यशाली तथा बलशाली पुरूष होते हैं।

F कन्या –
सौरमण्डलीय प्रभावों के कारण कन्या राशि के जातक अधिकांशतः पेट के निचले भागों के रोगों से प्रभावित होते हैं। कन्या राशि का स्वामी बुध होता है। बुध किसी का मित्र तथा शुत्र नहीं होता। कन्या राशि वालों को तांबा व कांसा धातु माफिक नहीं आते। ये सोना-चांदी आदि सभी प्रकार की धातुओं का उपयोग कर सकते हैं। कन्या राशि कमर की कारक है।

G तुला –
तुला राशि मूत्राशय की कारक है। यह जननेन्द्रिय व मूत्राशय सम्बन्धी बीमारियों को प्रभावित करती है। औरतों का मासिक चक्र व गर्म धारण इस राशि से विशेष प्रभावित होता है।
तुला लग्न वालों का जीवन संतुलित तथा अन्य लग्न वालो के साथ संतोषजनक व्यवहार होता है।

H वृश्चिक –
वृश्चिक राशि लिंग एवं गुदा की कारक है। यह अंतड़ियों एवं पाचन क्रिया को प्रभावित करती है। मस्तिष्क, जननांगो तथा मूत्राशय आदि पर अपना असर डालती है। यह यकृत सम्बन्धी बीमारियों को प्रकट करती है।

I धनु –
धनु राशि जंघा ( नितंब ) की कारक है। यह शरीर के मांसल भागों, हृदय, अंतड़ियों, जांघों एवं हिप्स को प्रभावित करती है। यह स्थिर एवं प्रशासनिक लग्न है। इसके द्वारा बवासीर, सूजाक आदि गुप्त रोग तथा हृदय की बीमारियां पैदा की जाती हैं।

J मकर –
मकर राशि घुटनों की कारक है। इसका स्वामी शनि है। यह राशि जांघ, श्लेष्मा, कफ इत्यादि विकारों को प्रभावित करती है। पाचन शक्ति पर भी अपना प्रभाव डालती है। इस लग्न के लोग अस्थिर, अशांत, धोखेबाज, मक्कार एवं कटु स्वाभाव के होते हैं।

K कुंभ –
कुंभ पिंडली की कारक राशि है। इसका स्वामी भी शनि है। कुंभ लग्न वाले लोगों में विद्वता, गहराई, नशा, सोच-शक्ति, स्थिरता, हठ, कठोरता और आत्मीयता का अंश दिखायी देता है। यह रक्तचाप, हार्निया आदि रोग पैदा करती है।

L मीन –
मीन राशि पैर का कारक है। यह तंत्रिका कोशिकाओं तथा घुटनों की बीमारियां बढ़ाती है। यदि मीन लग्न का स्वामी गुरु नीच का हो तो व्यक्ति शराबी होता है। अहंकारी स्वभाव वाले जातक को भाई-बहन का सुख नहीं प्राप्त होता। मीन लग्न वालों को प्रायः पीलिया या जिगर की बीमारी हो जाती है। यह उच्च शिक्षा प्राप्त करता है तथा अच्छी बुद्धि का मालिक होता है।
 

 
 
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